Thursday, February 19, 2009

एक और कविता

देखना ,
तुम्हारे शब्द हिलें नहीं
गाड़ देना जमीन में उन्हें
गहरा -
और रख देना उनके ऊपर पत्थर
ताकि हिला न पाएं अपनी पलकें
और निकल न पाएं कोंपल बनकर -

इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |

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