Monday, March 23, 2009

शहीद

कल बड़े उजाड़ होते हैं
और
होती है उनमे
जर्जर और वीरान खामोशी
कब्रिस्तान की तरह
जिनमें दबे होते हैं
कई प्रश्न
जिनकी कब्रों पर उगे होते हैं
हजारों उत्तर
चीखते और गुर्राते हुए
लाल लाल खून भरी आँखों से
बताते हुए
खामोश प्रश्नों का हश्र -
और
हैरान परेशान
आज ही जन्मे प्रश्न
ताकते हैं मेरी तरफ
उत्सुकता और भय से
भरी आँखों से
मैं
मुस्कुरा देता हूं
और डाल देता हूं
कब्र में दबे किसी प्रश्न में
अपने प्राण -
जानता हूँ , खतरा बहुत बड़ा है
आत्मघाती है
लेकिन जरुरी है
जिंदा रहना
प्रश्नों की पुरानी पीढी का
ताकि जिंदा रहे
आज की पीढी की उम्मीद -

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Sunday, March 15, 2009

एक आदमी था


एक कवि था

या शायद कवि नहीं था-

लाख कोशिश करता
पर नहीं लिख पाता प्रेम कवितायें,
नहीं मान पाता था
घर के पास रहने वाली लड़की को चाँद
या फ़िर परी |

न उसे लड़कियों के परी
होने पर यकीन होता ,
न ही चांद के लड़की होने का |
लड़की उसके लिये व्रत रखती,
पर वो नहीं समझ पाता
उसके व्रत और अपनी उम्र के रिश्ते को
उसे कभी समझ न आया
कि सुन्दर को सुन्दर कहना
और प्यार को प्यार कहना
क्यों जरूरी है।
वह दिल से सोचती थी,
वह दिमाग पर यकीन करता |
फ़िर भी, उसके जिद करने पर
वह लिखता था कवितायें-
जिनमें सूरज
अपनी मर्जी से ढलता था,
उसकी पलकों के झुकने पर नहीं,
और नदियों में मटमैला पानी बहता था
रोमांटिक कहानियाँ नहीं ।
उसके लिखे को कभी
किसी ने कविता
और उस कवि को कवि नहीं माना |

एक संत था
या शायद संत नहीं था -
लाख कोशिश करता,
पर नहीं मान पाता
पत्थर को भगवान,
नहीं देख पाता कभी
आसमान में बसे हैवन और हेल को-
वह कभी नहीं समझ पाया
कि
भगवान को भगवान
होने की याद दिलाना क्यों जरूरी है
और आदर देने के लिये
सिर झुकाना क्यों जरूरी है
कभी उसके पल्ले नहीं पड़ा ,
उसके जीवन का कोई और
कैसे जिम्मेदार है
उसने कभी सिर नहीं झुकाया,
प्रार्थना नहीं की
और खुद को छोड़कर किसी और पर
यकीन न किया |
उसके किये को कभी भी इबादत
और उसे कभी भी संत नहीं माना गया |

एक आदमी था
या शायद आदमी नहीं था -

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