Friday, October 2, 2009

इतने बुतों के ढेर पर बैठा है आदमी

इतने बुतों के ढेर पर बैठा है आदमी
कि आज अपने आप में तनहा है आदमी|

अपने खुदा के नाम पर मरना तो है कबूल
इंसां से किस कदर यहाँ खफा है आदमी |

किस किस की आह पर भला अब जिंदगी रुके,
कब जिंदगी की आह पर ठहरा है आदमी|

कल डूबते रहे कोई तिनका नहीं मिला ,
क्यों इतने गहरे ख्वाब से लड़ता है आदमी |

उल्फत की राह में कई , 'आलोक' , मर गए
पर नफरतों से आज भी मरता है आदमी

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