इतने बुतों के ढेर पर बैठा है आदमी
इतने बुतों के ढेर पर बैठा है आदमी
कि आज अपने आप में तनहा है आदमी|
अपने खुदा के नाम पर मरना तो है कबूल
इंसां से किस कदर यहाँ खफा है आदमी |
किस किस की आह पर भला अब जिंदगी रुके,
कब जिंदगी की आह पर ठहरा है आदमी|
कल डूबते रहे कोई तिनका नहीं मिला ,
क्यों इतने गहरे ख्वाब से लड़ता है आदमी |
उल्फत की राह में कई , 'आलोक' , मर गए
पर नफरतों से आज भी मरता है आदमी