थी बड़ी ही देर चुप्पी
लोग कहते हैं, कि हमने चाहतों में मात खाई
इस कदर लहरों ने अपने प्यार की कश्ती डुबाई
बस जरा सी बात थी ,अपनी समझ में जो न आई
मैं जिसे समझा सफ़र है, तुम उसे समझे लड़ाई
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पीर मेरी रागिनी है, दर्द मेरा साज़ है
खो गये अल्फ़ाज़ मेरे ,गुम बड़ी आवाज़ है
अब न पूछो आज़ शायर क्यों गज़ल कहता नहीं
मय्यतों में गज़ल का होता न कोई रिवाज़ है
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हैं चकित सारे सितारे,हो गया कवि बावला है
आसमाँ पर इन्कलाबों की फ़सल बोने चला है
ऐ खुदा सूरज़ छुपा ले अपने दामन के तले ,
आँख पर उसकी चमकने आज़ एक दीपक ज़ला है।”
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चाहतों को कोई आशियां न मिला
मदीने में भी गये, खुदा न मिला
ढूँढ़ते हम रह गये सारे जहान में
एक भी सुकून का दुकाँ न मिला
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थी बड़ी ही देर चुप्पी , अब ज़रा आवाज़ हो
अँधेरों के इस शहर में सुबह का आगाज़ हो
कौन कहता है हवा पर पाँव रख सकते नहीं
आसमाँ छूने का ये शायद कोई अंदाज़ हो।
-आलोक शंकर
6 comments:
थी बड़ी ही देर चुप्पी , अब ज़रा आवाज़ हो
अँधेरों के इस शहर में सुबह का आगाज़ हो
कौन कहता है हवा पर पाँव रख सकते नहीं
आसमाँ छूने का ये शायद कोई अंदाज़ हो।
बहुत खूबसूरत मुक्तक है आलोक जी अच्छा लगा...
Alok,
Awesome! Your writing capabilities are good.
I hope you are somehow already connected to Sh. Ashok Chakradhar.
कौन कहता है हवा पर पाँव रख सकते नहीं
आसमाँ छूने का ये शायद कोई अंदाज़ हो।
बहुत सुन्दर आलोक जी, आक्रामक लेखनी से गहरा असर पैदा करने वाले भाव निकले हैं
अनुपम रचना के लिये बधाई
सस्नेह्
गौरव शुक्ल
कौन कहता है हवा पर पाँव रख सकते नहीं
आसमाँ छूने का ये शायद कोई अंदाज़ हो।
वाह, आलोक जी!
इन पंक्तियों को पढकर मन प्रसन्न हो गया। सही जा रहे हैं आप।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
From my small understanding of Hindi poetry, this piece of work is awesome. Somewhere I could myself connect to it. So felt great to see such feelings penned down. Keep up the good work.
आसमाँ छूने का ये शायद कोई अंदाज़ हो।"
बहुत ही बेहतरीन ज़ज्बा है आसमाँ छूने का..दुष्यंत कुमार की याद आ गयी .
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