एक और कविता
देखना ,
तुम्हारे शब्द हिलें नहीं
गाड़ देना जमीन में उन्हें
गहरा -
और रख देना उनके ऊपर पत्थर
ताकि हिला न पाएं अपनी पलकें
और निकल न पाएं कोंपल बनकर -
इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |
13 comments:
इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
बहुत ही सुन्दर।
वाह बहुत खूब गुरु मज़ा आ गया ...बहुत अच्छा लिखा है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा ....bahut badhiyaa
Wah bahut hi khubsurat...
" Ki komaltaa chhoo na sake..."dard aur kadvaahat ek saath liye...shayad sapne tootneka dard, manme katuta paida kar deta hai..
वाह...वा...जोश से भरी खुद्दार रचना है आपकी...आनंद आ गया पढ़ कर...
नीरज
Kabhi samay ho to mere blogpe zaroor aayen...bohot khushee hogee...
इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |
बढ़िया कविता है...शब्दों में वाकई बहुत जान होती है। लेकिन कोमलता की भी अपनी ताकत होती है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
अलोक जी,
आपकी रचना पढ़ी, शब्द की कठोरता से मन की कोमलता की बात की है आपने | बहुत अच्छी लगी रचना, बधाई कुबूल करें |
sundar kavita lagi aapki...
mere blog par bhi aaiye
इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |
बहुत ही अनूठे अंदाज़ में लिखा है आपने, शब्दों का अद्भुद प्रयोग.......
कुछ प्रश्नों को उठाती सुंदर रचना
अच्छी रचना है।बधाई।
देखना ,
तुम्हारे शब्द हिलें नहीं
गाड़ देना जमीन में उन्हें
गहरा -...........
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |
बहुत अच्छा लिखा है आपने शब्दों से खेलना कोई आप से सीखे ....
आप बधाई के पात्र है ,
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