ये खराश-ए-दिल है क्यों
ये खराश-ए-दिल है क्यों , हैं निगाहें लहूलुहान
कल शब् तो गुल खिले थे इधर , ईदगाह थे
मेरा ही तो दिल नहीं है कि जिसपर सितम हुए
तब उनकी निगाहों से जमाने तबाह थे
सब वक्त लुट गया मेरा , एक पल भी ना रहा
एक दौर था कि हम भी बड़े बादशाह थे