Thursday, February 19, 2009

एक और कविता

देखना ,
तुम्हारे शब्द हिलें नहीं
गाड़ देना जमीन में उन्हें
गहरा -
और रख देना उनके ऊपर पत्थर
ताकि हिला न पाएं अपनी पलकें
और निकल न पाएं कोंपल बनकर -

इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |

13 comments:

शोभा February 19, 2009 at 3:24 AM  

इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
बहुत ही सुन्दर।

अनिल कान्त February 19, 2009 at 3:29 AM  

वाह बहुत खूब गुरु मज़ा आ गया ...बहुत अच्छा लिखा है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

रश्मि प्रभा... February 19, 2009 at 4:35 AM  

वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा ....bahut badhiyaa

Anonymous,  February 19, 2009 at 4:55 AM  

Wah bahut hi khubsurat...

shama February 19, 2009 at 4:58 AM  

" Ki komaltaa chhoo na sake..."dard aur kadvaahat ek saath liye...shayad sapne tootneka dard, manme katuta paida kar deta hai..

नीरज गोस्वामी February 19, 2009 at 5:00 AM  

वाह...वा...जोश से भरी खुद्दार रचना है आपकी...आनंद आ गया पढ़ कर...

नीरज

shama February 19, 2009 at 5:04 AM  

Kabhi samay ho to mere blogpe zaroor aayen...bohot khushee hogee...

तरूश्री शर्मा February 19, 2009 at 7:26 PM  

इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |

बढ़िया कविता है...शब्दों में वाकई बहुत जान होती है। लेकिन कोमलता की भी अपनी ताकत होती है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

डॉ. जेन्नी शबनम February 19, 2009 at 10:28 PM  

अलोक जी,
आपकी रचना पढ़ी, शब्द की कठोरता से मन की कोमलता की बात की है आपने | बहुत अच्छी लगी रचना, बधाई कुबूल करें |

राजीव करूणानिधि February 20, 2009 at 1:10 AM  

sundar kavita lagi aapki...

mere blog par bhi aaiye

दिगम्बर नासवा February 20, 2009 at 2:21 AM  

इस तरह रखना उन्हें
कि कोमलता छू भी न सके ,
और वे उगें तो सीधा ठूंठ की तरह
कठोर , नमीरहित हो कर
ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |

बहुत ही अनूठे अंदाज़ में लिखा है आपने, शब्दों का अद्भुद प्रयोग.......
कुछ प्रश्नों को उठाती सुंदर रचना

परमजीत सिहँ बाली February 20, 2009 at 7:44 AM  

अच्छी रचना है।बधाई।

Unknown February 21, 2009 at 9:14 AM  

देखना ,
तुम्हारे शब्द हिलें नहीं
गाड़ देना जमीन में उन्हें
गहरा -...........

ताकि बनाया जा सके इन्हें
वज्र ऐसा
कि शत्रुओं का हो सके खात्मा ,
और न जाए किसी दधीचि की जान |
बहुत अच्छा लिखा है आपने शब्दों से खेलना कोई आप से सीखे ....
आप बधाई के पात्र है ,

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