तुम होते तो …
तुम होते तो
इतना कुरूप अंतर का यह शृंगार न होता
नयनों में यह बद्ध नीर , उर का पीड़ित संसार न होता ।
मानस -पटल घने कोहरे में जब भी दुःखाकुल होता;
शोक - मलिन उर के पट पर नयनों की उजियाली मलता ।
विपदा के वीरानों में जब भी आहट तेरी दिखती;
निज - प्राणों के टुकड़े करके , सुख- संगीत बहा देता ।
प्रिये ! तुम्हारा मन किंचित, अँधियारों से विचलित होता;
प्रकृति से विद्रोह उठा मैं नव- आदित्य उगा देता
……… तुम होते तो ।
6 comments:
हिन्दी चिट्ठे जगत में आपका स्वागत है।
सुन्दर शब्द, सुन्दर भाव ! रचना बहुत अच्छी लगी ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
miredmiragemusings.blogspot.com/
सुंदर रचना के साथ चिट्ठा जगत में आपका प्रवेश,
बधाई स्वीकारे!!
आपकी कविता में सुदंर प्रवाह है ...बधाई
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद, ऐसे ही प्रोत्साहन देते रहिये ।
आलोक बहुत सुंदर रचना है,...लिखते रहिए।
सुनीता
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