Saturday, January 27, 2007

कविता

प्रस्तर -तनुजा , तन्वि -स्नेहिल सरिता


भाव भर - भर भार ढोती - कल्पना ;


नीरसा रसभरी , शीतल ऊष्णता


शशिकला , कमनीयता -कोमल कली की |



रेत पर बह्ती सुशीतल गीतिका -


सप्त रव , रंगीन रश्मि - विभा


काम तरु का गरल फल , निष्काम;


घटा में घट भर भरी श्यामल प्रभा


स्वस्ति सुधा , विहग व्रती की |


भाव भर अभाव , नेत्र - धारा सार


ह्रिदय वीणा- क्लेष राग रव,


श्रान्त चरण चपल , विकल चक्षु


तोष , त्रिप्ति - मरीचिका -सैकत पथी की|



ताप ,तेज - नित नया भानु रचती


सुप्त बुत -बेकल नयन में


सृष्टि- सारा, अश्रु धारा - लोल लहरें


प्रलयदा हुंकार - दलित यती की |


-आलोक शंकर

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