उजालों की जानिब कहाँ जिन्दगी है
दहकती सुबह ,खौलता आसमाँ है
चलो ढूँढ़ते हैं गमों का बहाना
बहुत देर से रोशनी का समाँ है ।
बहुत चाँदनी जी चुकी हैं निगाहें
कि आँखों में सीलन है,कोहरा घना है
न अब ख्वाब डालो हमारी नसों में
उनींदे समय को जरा जागना है ।
कहीं और ढूँढ़ें चलो आशियाने
फ़लक पर बहुत रंज बिखरे पड़े हैं
कहाँ तक सितारे बुझाते रहोगे
तुम्हारे शहर में हज़ारों पड़े हैं
खड़े आईनों में कई अजनबी थे
हमें होश आया संभलते-संभलते
बड़ा प्यार था आदमी से खुदा को
फ़रिश्ता हुआ वो बदलते-बदलते
-आलोक शंकर
वादा किया वो कोई और था, वोट मांगने वाला कोई और
2 months ago
1 comments:
bahut umda.....ek gazab ki khoobsoorti hai aapki kalam me.god bless u.
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