हाशिये पर ज़िन्दगी
नोट : यह कविता पत्रिका 'अनुभूति ' में प्रकाशित है ।
हमें न सागरों सी ख्वाहिशें उठानी हैं
कि एक बूँद से हलक अभी भी ज़िन्दा है
किसी खयाल से लहू कभी थमा होगा
झलक से आँख में लमहा कोइ जमा होगा
कि काश उम्र तलक हम उसी को जी पाते
समय की तेज़ तेज़ आन्धियों में सी पाते
तो ज़िन्दगी न यूँ ही बेवज़ह पड़ी होती
खुले लिहाफ़ की रेखा ज़रा बड़ी होती
कई कहानियॉ सी हाशिये पर सिमटी हैं
तभी बेज़ान से ये हाशिये भी ज़िन्दा हैं
1 comments:
आपके ब्लाग पर पहली बार आया...निराशा नही हुई...
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www.swar-samvedna.blogspot.com
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